क़तर पर इस्राईल के आतंकी हमलों के बाद अब ज़ायोनी मीडिया में उसके अगले टारगेट को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है। हिब्रू मीडिया में इस बात की चर्चा है कि इस्राईल का अगला टारगेट तुर्की हो सकता है। तमाम संकेत तुर्की की ओर इशारा कर रहे हैं।
हमास नेता लंबे समय से कतर मे मौजूद हैं। दोहा हमेशा से इस्राईल हमास के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहा है, इसलिए किसी को भी अंदाजा नहीं था कि ज़ायोनी शासन यहां हमला कर सकता है। कहा जा रहा है कि इस कार्रवाई में वॉशिंगटन की सहमति भी शामिल थी।
तुर्की को भरोसा है कि नाटो की सदस्यता उसे हमले से बचा लेगी, लेकिन हकीकत इतनी सीधी नहीं है। नाटो सामूहिक रक्षा के उसूल पर चलता है, जिसमें किसी सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाता है। पर यह ऑटोमैटिक रूप से लागू नहीं होता बल्कि सभी देशों की सहमति जरूरी है और यहीं पर तुर्की की मुश्किलें बढ़ती हैं। अमेरिका और उसके यूरोपीय साथियों की मक्कारी के साथ साथ स्वीडन और फिनलैंड जैसे नए सदस्य भी तुर्की से खफा हैं।
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